समवाय का अर्थ
ज्ञान की अखंडता , विषय की बोधगम्यता तथा किसी विषय की स्पष्टता के लिए आवश्यकता अनुसार एक विषय की अन्य विषय से संबंध स्थापित करना सहसंबंध / समवाय है ।
सहसंबंध / समवाय का कदापि अर्थ समन्वय या एकीकरण नहीं होता है किसी विषय को पढ़ते समय अनुभूत आवश्यकता के अनुकूल विषय के स्पष्टीकरण हेतु अन्य विषय से सहज संबंध स्थापित करना ही समवाय है ।
समवाय की आवश्यकता
ज्ञान के विस्तृत क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए उसे कई विषयों में बांट दिया गया है परंतु प्रत्येक विषय स्वयं में स्वतंत्र जरूर है लेकिन दूसरे विषयों के साथ अंतर संबंध रखता है इसीलिए उसकी स्पष्ट तथा बोधगम्यता के लिए अन्य विषय की आवश्यकता होती है l जैसे इतिहास में किसी युद्ध के स्थान या आक्रमण के क्षेत्र को समझने के लिए भूगोल विषय का सहारा लिया जाता है l
समवाय के प्रकार
आपाती /प्रासंगिक समवाय
यह पूर्व नियोजित नहीं होता है अर्थात शिक्षक किसी विषय को समझने के लिए आकस्मिक रूप से ही अन्य विषय का सहारा ले लेता है ।
पूर्व नियोजित समवाय
यह पूर्व नियोजित होता है जिसमें शिक्षक किसी प्रकरण या पाठ को पढ़ने से पूर्व ही नियोजित करता है कि विषय की स्पष्टता हेतु वह किस अन्य विषय का उपयोग व्याख्यान में कर सकता है या करेगा ।
क्षैतिज समवाय
इसमें किसी एक ही कक्षा के एक विषय का इस कक्षा के अन्य विषयों के साथ साथ संबंध आवश्यकता अनुसार स्थापित किया जाता है जैसे कक्षा आठवीं के इतिहास का समवाय कक्षा आठवीं के भूगोल के विषय के साथ किया जा सकता है।
लामबंतर समवाय
इसमें किसी एक कक्षा एक विषय को इस कक्षा के अतिरिक्त अन्य उच्च कक्षा या निम्न कक्षा के किसी अन्य विषय के साथ सह संबंध स्थापित किया जाता है जैसे कक्षा आठवीं के इतिहास का कक्षा सातवीं के भूगोल विषय के साथ समवाय किया जा सकता है ।
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