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प्रश्न 1 . पर्यावरण शिक्षा (environmental education) का अर्थ क्या होता है ? पर्यावरणीय शिक्षा के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
पर्यावरण शिक्षा का अर्थ
पर्यावरण शिक्षा (environmental education) का मतलब है लोगों को उनके चारों ओर के पर्यावरण के बारे में जानकारी देना, उन्हें पर्यावरण की समस्याओं के बारे में जागरूक करना, और उन्हें इन समस्याओं के समाधान के लिए तैयार करना। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करना है।
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पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र
पर्यावरण शिक्षा के कई क्षेत्र हैं, जिनमें हम विभिन्न तरीकों से पर्यावरण के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं।
1. विद्यालय और कॉलेज शिक्षा
विद्यालयों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर छात्रों को पर्यावरण के महत्व और समस्याओं के बारे में जानकारी दी जाती है।
2. जनजागरूकता अभियान
सामुदायिक कार्यक्रम, कार्यशालाएँ, और सेमिनार आयोजित करके आम लोगों में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाई जाती है।
3. प्रोफेशनल प्रशिक्षण
कारोबारी संस्थानों और संगठनों में कर्मचारियों को पर्यावरण संबंधी नियमों और स्थिरता के सिद्धांतों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है।
4. मीडिया और संचार
टीवी, रेडियो, इंटरनेट, और सोशल मीडिया के माध्यम से पर्यावरण संबंधी जानकारी और संदेशों का प्रचार-प्रसार किया जाता है।
5. सरकारी और गैर-सरकारी संगठन
पर्यावरण संरक्षण के लिए नीतियाँ बनाई जाती हैं और उन पर अमल किया जाता है। इसके अलावा, विभिन्न पर्यावरणीय कार्यक्रमों का संचालन किया जाता है।
6. शोध और विकास
पर्यावरणीय समस्याओं पर शोध किया जाता है और उनके समाधान निकाले जाते हैं।
7. स्थानीय समुदाय
स्थानीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के प्रयास किए जाते हैं, जैसे कि वृक्षारोपण, स्वच्छता अभियान, और कचरा प्रबंधन।
पर्यावरण शिक्षा के विषय
पर्यावरण शिक्षा को विभिन्न विषयों के साथ मिलाकर पढ़ाया जाता है ताकि छात्र पर्यावरण की गहरी समझ विकसित कर सकें। इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
1. पर्यावरण शिक्षा और जीव विज्ञान
- पारिस्थितिकी तंत्र: विभिन्न जीवों के बीच संबंध और पर्यावरण पर उनके प्रभाव को समझना।
- जैव विविधता: जैव विविधता के महत्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में सीखना।
- प्रदूषण और स्वास्थ्य: पर्यावरणीय प्रदूषण और उसका जीवों के स्वास्थ्य पर प्रभाव जानना।
2. पर्यावरण शिक्षा और भौतिक विज्ञान
- ऊर्जा संसाधन: ऊर्जा के स्रोतों, उनके उपयोग, और पर्यावरण पर उनके प्रभाव के बारे में जानकारी देना।
- जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस प्रभाव, और जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझना।
- नवीकरणीय ऊर्जा: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अध्ययन करना।
3. पर्यावरण शिक्षा और सामाजिक विज्ञान
- पर्यावरणीय नीतियाँ: विभिन्न सरकारों और संगठनों द्वारा बनाई गई पर्यावरणीय नीतियों और उनके प्रभावों के बारे में जानना।
- सामुदायिक भागीदारी: समुदाय के स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना।
- टिकाऊ विकास: टिकाऊ विकास के सिद्धांतों और प्रथाओं के बारे में सीखना, जिससे समाज और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहे।
इन क्षेत्रों के माध्यम से पर्यावरण शिक्षा समाज के हर व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनाती है, जिससे एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य की नींव रखी जा सके।
पारिस्थितिकी क्या है ? उचित उदाहरण के द्वारा स्पष्ट कीजिए ।
पारिस्थितिकी का अर्थ
पारिस्थितिकी (Ecology) एक विज्ञान है जो जीवों और उनके पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन करता है। यह अध्ययन करता है कि जीव एक-दूसरे के साथ और अपने भौतिक पर्यावरण के साथ कैसे संपर्क करते हैं, जिसमें हवा, पानी, मिट्टी, और अन्य जीव शामिल हैं।
पारिस्थितिकी के उदाहरण
1. जंगल का पारिस्थितिकी तंत्र
- उदाहरण: एक उष्णकटिबंधीय वर्षावन (tropical rainforest)।
- विवरण: इस पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधे, जानवर, कीड़े, और सूक्ष्मजीव होते हैं। सभी जीव पारस्परिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। पेड़ और पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करते हैं, जो शाकाहारी जानवर खाते हैं। शाकाहारी जानवरों को मांसाहारी जानवर खाते हैं। इस पूरे चक्र को जीवों की मृत्यु और विघटन पूरा करते हैं, जिससे मिट्टी में पोषक तत्व वापस लौट आते हैं।
2. तालाब का पारिस्थितिकी तंत्र
- उदाहरण: एक तालाब (pond)।
- विवरण: तालाब में जल जीव, पौधे, शैवाल, और सूक्ष्मजीव होते हैं। शैवाल और जल पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन और भोजन का उत्पादन करते हैं। यह भोजन छोटे जीवों और कीड़ों के लिए होता है, जो मछलियों और अन्य बड़े जीवों द्वारा खाए जाते हैं। तालाब का पानी और उसका तापमान भी जीवों के जीवन को प्रभावित करता है।
3. मरुस्थल का पारिस्थितिकी तंत्र
- उदाहरण: सहारा मरुस्थल (Sahara Desert)।
- विवरण: मरुस्थल में बहुत कम पानी और अत्यधिक तापमान होता है। यहाँ के पौधे और जानवर सूखे और गर्मी के अनुकूलित होते हैं। जैसे, कैक्टस अपने तनों में पानी संचित करते हैं और उनकी पत्तियाँ कांटे के रूप में होती हैं जिससे पानी का वाष्पीकरण कम हो। जानवर जैसे ऊँट अपने शरीर में पानी संग्रहित करते हैं और लंबे समय तक बिना पानी के रह सकते हैं।
निष्कर्ष
पारिस्थितिकी का अध्ययन हमारे पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों के बीच के जटिल संबंधों को समझने में मदद करता है। यह ज्ञान हमें पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन में सहायता प्रदान करता है, जिससे हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का स्थायी और संतुलित उपयोग कर सकें।
जैव मंडल और जैव विविधता को उदाहरण सहित समझाइए ।
जैव मंडल (Biosphere)
अर्थ
जैव मंडल पृथ्वी का वह भाग है जहां जीवन पाया जाता है। इसमें पृथ्वी की सतह, जलमंडल (हाइड्रोस्फीयर), वायुमंडल (एटमॉस्फीयर) और भू-मंडल (लिथोस्फीयर) शामिल हैं। जैव मंडल में सभी जीवित प्राणी और उनके साथ जुड़ी भौतिक पर्यावरणीय स्थितियाँ शामिल हैं।
उदाहरण
- भूमि पर: वन, घास के मैदान, और मरुस्थल जैसे विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र।
- जल में: समुद्र, नदियाँ, झीलें, और तालाब।
- वायुमंडल में: जहां पक्षी उड़ते हैं और कीट अपनी गतिविधियाँ करते हैं।
जैव मंडल में ये सभी पारिस्थितिकी तंत्र एक दूसरे से जुड़े होते हैं और मिलकर पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखते हैं।
जैव विविधता (Biodiversity)
अर्थ
जैव विविधता का मतलब है पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवों की विविधता और भिन्नता। इसमें विभिन्न प्रजातियों (species diversity), आनुवंशिक विविधता (genetic diversity), और पारिस्थितिकी तंत्र विविधता (ecosystem diversity) शामिल है। जैव विविधता का महत्व इसलिए है क्योंकि यह पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और स्वास्थ्य को बनाए रखती है।
उदाहरण
- प्रजातियों की विविधता:
- उदाहरण: एक वन में विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधे, जानवर, पक्षी, और कीट पाए जाते हैं। जैसे, अमेज़न वर्षावन में हजारों प्रकार की पौधों और जानवरों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- आनुवंशिक विविधता:
- उदाहरण: एक ही प्रजाति के भीतर विभिन्न प्रकार के आनुवंशिक गुण होते हैं। जैसे, एक ही प्रजाति के चावल के पौधों में विभिन्न प्रकार के आनुवंशिक गुण होते हैं, जो उन्हें अलग-अलग वातावरण में उगने की क्षमता प्रदान करते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता:
- उदाहरण: धरती पर विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र पाए जाते हैं, जैसे कि उष्णकटिबंधीय वर्षावन, सवाना, रेगिस्तान, तटीय क्षेत्र, और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र में विशेष प्रकार की जैव विविधता होती है जो उसे अद्वितीय बनाती है।
निष्कर्ष
जैव मंडल और जैव विविधता हमारे ग्रह के जीवन के महत्वपूर्ण अंग हैं। जैव मंडल वह ढांचा है जिसमें सभी जीवन मौजूद होता है, जबकि जैव विविधता उस जीवन की समृद्धि और भिन्नता को दर्शाती है। इन दोनों का संरक्षण आवश्यक है ताकि पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता और पर्यावरणीय संतुलन बना रहे।
ग्रीन हाउस प्रभाव और ओजोन का क्रमिक हास में क्या अंतर है ?
ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse Effect)
अर्थ
ग्रीनहाउस प्रभाव वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी के वातावरण में कुछ गैसें सूर्य से आने वाली ऊर्जा को अवशोषित करती हैं और इसे पुनः उत्सर्जित करती हैं, जिससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ता है। इस प्रक्रिया के बिना, पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता, क्योंकि यह प्रभाव पृथ्वी के तापमान को जीवन योग्य बनाता है।
प्रक्रिया
- सूर्य की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती हैं और पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं।
- पृथ्वी की सतह से निकलने वाली अवरक्त (इन्फ्रारेड) किरणें वायुमंडल में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और जल वाष्प) द्वारा अवशोषित की जाती हैं।
- ये गैसें अवरक्त ऊर्जा को पुनः उत्सर्जित करती हैं, जो पृथ्वी की सतह और निचले वायुमंडल को गर्म करती हैं।
प्रभाव
- ग्लोबल वार्मिंग: ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।
- जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम पैटर्न बदल रहे हैं, जिससे सूखा, बाढ़, और तूफान जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।
ओजोन का क्रमिक हास (Ozone Depletion)
अर्थ
ओजोन का क्रमिक हास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी के समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फीयर) में ओजोन परत की मोटाई कम हो रही है। ओजोन परत सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट (UV) किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी की सतह को सुरक्षित रखती है।
प्रक्रिया
- कुछ रासायनिक पदार्थ, जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), जब वायुमंडल में पहुँचते हैं, तो वे समताप मंडल में टूट जाते हैं।
- ये रासायनिक पदार्थ क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणुओं को मुक्त करते हैं।
- ये परमाणु ओजोन अणुओं (O3) के साथ प्रतिक्रिया करके उन्हें ऑक्सीजन (O2) में तोड़ देते हैं, जिससे ओजोन परत पतली हो जाती है।
प्रभाव
- यूवी विकिरण में वृद्धि: ओजोन परत के पतला होने से अधिक यूवी विकिरण पृथ्वी की सतह पर पहुँचता है, जिससे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ती हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव: यूवी विकिरण में वृद्धि से समुद्री जीवन, फसलों, और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अंतर
- कारण:
- ग्रीनहाउस प्रभाव: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से होता है।
- ओजोन का क्रमिक हास: क्लोरीन और ब्रोमीन युक्त रसायनों के उत्सर्जन से होता है।
- प्रभाव:
- ग्रीनहाउस प्रभाव: पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन।
- ओजोन का क्रमिक हास: अधिक यूवी विकिरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्याएँ।
- उपाय:
- ग्रीनहाउस प्रभाव: ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना।
- ओजोन का क्रमिक हास: ओजोन-क्षयकारी रसायनों का उपयोग बंद करना (जैसे कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत CFCs का निषेध)।
इन दोनों प्रक्रियाओं का पर्यावरण और मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, और इनसे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग और उपाय आवश्यक हैं।
वायु संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम , 1981 की वायु प्रदूषण नियंत्रण में भूमिका स्पष्ट कीजिए ।
वायु संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1981
भूमिका और उद्देश्य
वायु संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1981 (Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981) का मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण, और निवारण करना है। यह अधिनियम भारत में वायु गुणवत्ता को बनाए रखने और सुधारने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
मुख्य प्रावधान
- परिभाषाएँ: अधिनियम वायु प्रदूषण, वायु प्रदूषक, और प्रदूषण नियंत्रण उपकरण जैसी महत्वपूर्ण परिभाषाओं को स्पष्ट करता है।
- केंद्रीय और राज्य बोर्डों का गठन:
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB): यह बोर्ड वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए नीतियों और कार्यक्रमों का विकास करता है।
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB): ये बोर्ड राज्य स्तर पर वायु प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण करते हैं।
- वायु गुणवत्ता मानक: CPCB विभिन्न क्षेत्रों के लिए वायु गुणवत्ता मानक स्थापित करता है और SPCB इन मानकों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- प्रदूषण नियंत्रण उपकरण: अधिनियम के तहत उद्योगों को वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों को स्थापित और बनाए रखना अनिवार्य है।
- उद्योगों का पंजीकरण और अनुमति: सभी उद्योगों को SPCB से वायु प्रदूषण फैलाने की अनुमति लेनी होती है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके उत्सर्जन मानकों के भीतर हैं।
- निगरानी और निरीक्षण: SPCB समय-समय पर उद्योगों का निरीक्षण करता है और वायु गुणवत्ता की निगरानी करता है। बोर्ड को किसी भी उल्लंघन की स्थिति में कार्रवाई करने का अधिकार है।
- निषेधात्मक आदेश: अधिनियम के तहत प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को निषेधात्मक आदेश जारी किए जा सकते हैं, और आवश्यकतानुसार उन्हें बंद किया जा सकता है।
- जनता की भागीदारी: अधिनियम जनता को वायु प्रदूषण के मुद्दों पर जागरूक करने और उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
वायु प्रदूषण नियंत्रण में भूमिका
- मानकों का निर्धारण: अधिनियम के तहत वायु गुणवत्ता मानकों का निर्धारण करके, यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रदूषण के स्तर नियंत्रित रहें।
- उद्योगों का नियमन: उद्योगों को वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित करने और मानकों के अनुरूप कार्य करने की अनिवार्यता से वायु प्रदूषण कम होता है।
- निगरानी और प्रवर्तन: SPCB द्वारा किए गए निरीक्षण और निगरानी गतिविधियाँ सुनिश्चित करती हैं कि उद्योग और अन्य स्रोत वायु प्रदूषण के मानकों का पालन कर रहे हैं।
- कानूनी कार्रवाई: उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करके अधिनियम प्रदूषण फैलाने वालों को हतोत्साहित करता है।
- जन जागरूकता: अधिनियम के माध्यम से जन जागरूकता बढ़ाकर, यह समाज को वायु प्रदूषण के प्रति संवेदनशील बनाता है और सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।
निष्कर्ष
वायु संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1981 वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अधिनियम एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिसके माध्यम से वायु गुणवत्ता की निगरानी, नियंत्रण, और सुधार संभव होता है। इसके प्रभावी कार्यान्वयन से देश में स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
NEAC के उद्देश्य एवं कार्य लिखिए ।
राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (NEAC) के उद्देश्य एवं कार्य
उद्देश्य
राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (National Environmental Awareness Campaign, NEAC) भारत सरकार द्वारा 1986 में शुरू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना और उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करना है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- पर्यावरणीय जागरूकता: समाज में पर्यावरण संबंधी मुद्दों और चुनौतियों के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
- सामूहिक भागीदारी: विभिन्न संगठनों, संस्थाओं, और समुदायों को पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल करना।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: जल, वायु, मिट्टी, वन, और वन्यजीवों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति जनमानस को प्रेरित करना।
- स्थायी विकास: सतत विकास के सिद्धांतों को प्रोत्साहित करना, जिससे वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियाँ संतुलित और सुरक्षित वातावरण में जीवन यापन कर सकें।
- शैक्षणिक और प्रशिक्षण कार्यक्रम: छात्रों, शिक्षकों, और अन्य संबंधित लोगों के लिए पर्यावरणीय शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
कार्य
NEAC के अंतर्गत विभिन्न कार्य और गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जो इस प्रकार हैं:
- कार्यशालाएँ और सेमिनार:
- पर्यावरणीय मुद्दों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।
- विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा की जाती है।
- जन जागरूकता अभियान:
- पोस्टर, पर्चे, ब्रोशर, और अन्य सूचना सामग्री के माध्यम से जागरूकता फैलाना।
- रेडियो, टेलीविजन, और सोशल मीडिया का उपयोग करके पर्यावरणीय संदेशों का प्रचार करना।
- शैक्षणिक कार्यक्रम:
- विद्यालयों और कॉलेजों में पर्यावरणीय शिक्षा कार्यक्रम आयोजित करना।
- छात्रों के बीच वाद-विवाद, चित्रकला प्रतियोगिता, निबंध लेखन, और नाटकों का आयोजन।
- प्रदर्शनी और मेले:
- पर्यावरण प्रदर्शनी और मेलों का आयोजन, जिसमें विभिन्न संगठनों द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे कार्यों को प्रदर्शित किया जाता है।
- स्थायी विकास और स्वच्छता जैसे विषयों पर जागरूकता फैलाना।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण:
- वृक्षारोपण अभियान, जल संरक्षण परियोजनाएँ, और कचरा प्रबंधन कार्यक्रम।
- स्थानीय समुदायों को शामिल करके जल स्रोतों, वन क्षेत्रों, और जैव विविधता का संरक्षण।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम:
- शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और अन्य संबंधित लोगों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- पर्यावरणीय मुद्दों की गहरी समझ और उन्हें सुलझाने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना।
- सहयोग और भागीदारी:
- सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों, और समुदायों के साथ सहयोग करना।
- पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में सामूहिक भागीदारी को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (NEAC) का मुख्य उद्देश्य समाज में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना और उन्हें सक्रिय रूप से पर्यावरण संरक्षण में भाग लेने के लिए प्रेरित करना है। इसके तहत आयोजित विभिन्न कार्यक्रम और गतिविधियाँ लोगों को पर्यावरण के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का एहसास कराती हैं और एक स्थायी और स्वस्थ वातावरण की स्थापना में सहायक होती हैं।
सुंदरलाल बहुगुणा के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए कार्य को लिखिए ।
सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए कार्य
सुंदरलाल बहुगुणा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और गांधीवादी विचारक थे, जिन्होंने भारतीय हिमालय में पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उनके प्रमुख कार्यों में चिपको आंदोलन, वनों का संरक्षण, और नदियों को बचाने के प्रयास शामिल हैं। उनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
1. चिपको आंदोलन (Chipko Movement)
- परिचय: चिपको आंदोलन 1970 के दशक में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के हिमालयी क्षेत्रों में शुरू हुआ। इसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना और पर्यावरण की रक्षा करना था।
- कार्रवाई: इस आंदोलन में ग्रामीण महिलाएँ प्रमुख रूप से शामिल थीं, जो पेड़ों को गले लगाकर (चिपको) उन्हें काटे जाने से बचाती थीं।
- योगदान: बहुगुणा ने ग्रामीणों को संगठित किया और इस आंदोलन को एक व्यापक पर्यावरणीय संघर्ष में बदल दिया। उन्होंने देशभर में जागरूकता अभियान चलाया और वनों की कटाई के खतरों के प्रति लोगों को जागरूक किया।
2. हिमालयी वनों का संरक्षण
- उद्देश्य: हिमालयी वनों के संरक्षण और पुनरुत्थान के प्रति बहुगुणा का समर्पण उल्लेखनीय था। वे वनों के महत्व को समझते थे और उन्हें जलवायु परिवर्तन, बाढ़, और भूस्खलन जैसी समस्याओं के खिलाफ एक प्राकृतिक रक्षा के रूप में देखते थे।
- प्रयास: उन्होंने स्थानीय समुदायों को संगठित करके वनों के संरक्षण के लिए कई पहलें शुरू कीं। उन्होंने वृक्षारोपण कार्यक्रमों का आयोजन किया और वन संसाधनों के सतत उपयोग पर जोर दिया।
3. टिहरी बाँध विरोध (Anti-Tehri Dam Protest)
- परिचय: टिहरी बाँध परियोजना, जो भागीरथी और भीलांगना नदियों पर बनाई गई थी, के खिलाफ बहुगुणा ने लंबा विरोध किया। उनका मानना था कि यह परियोजना पर्यावरणीय संतुलन को नष्ट करेगी और हजारों लोगों को विस्थापित करेगी।
- कार्रवाई: बहुगुणा ने कई वर्षों तक इस परियोजना के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन चलाया। उन्होंने भूख हड़ताल और विरोध प्रदर्शन किए, और सरकार को इस परियोजना के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया।
4. गंगा नदी का संरक्षण
- उद्देश्य: बहुगुणा गंगा नदी को भारतीय संस्कृति और पर्यावरण का अभिन्न हिस्सा मानते थे। वे गंगा की स्वच्छता और संरक्षण के लिए समर्पित थे।
- प्रयास: उन्होंने गंगा की स्वच्छता के लिए कई अभियान चलाए और लोगों को इस नदी के महत्व के प्रति जागरूक किया। उन्होंने गंगा के किनारे वृक्षारोपण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम किया।
5. शिक्षा और जागरूकता
- परिचय: बहुगुणा ने पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। उन्होंने युवा पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में व्याख्यान दिए।
- प्रयास: उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों और पर्यावरणीय संघर्षों को साझा करके लोगों को प्रेरित किया। उनके द्वारा किए गए शिक्षा प्रयासों ने कई लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया।
निष्कर्ष
सुंदरलाल बहुगुणा का जीवन और कार्य हमें पर्यावरण संरक्षण की महत्वपूर्णता का एहसास कराता है। उनके द्वारा किए गए प्रयास न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनका योगदान हमें सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराता है
एपिको आंदोलन की व्याख्या कीजिए ।
एपिको आंदोलन (Appiko Movement) भारतीय पर्यावरणीय आंदोलन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो 1983 में उत्तर कर्नाटक के चिप्पकोडी गांव में आरंभ हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था अपनी आस्थाओं के अनुसार वनों के संरक्षण को बढ़ावा देना और वन संसाधनों को बचाना। यह आंदोलन गांधीवादी आदातों पर आधारित था और उसने अहिंसात्मकता और सामाजिक समरसता के सिद्धांतों को अपनाया।
मुख्य पहलुओं की व्याख्या:
- वनों के संरक्षण: एपिको आंदोलन ने वनों के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाई। यह विशेष रूप से वन कटाई के खिलाफ था और लोगों को पेड़ों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
- सामाजिक समरसता: यह आंदोलन सामाजिक समरसता के मूल्यों को बढ़ावा देने का भी प्रयास करता था। विभिन्न समुदायों के लोग इसमें शामिल होकर वनों की रक्षा के लिए साझी उम्मीदों और मांगों को बढ़ावा देने में सक्रिय रहे।
- गांधीवादी पहलु: यह आंदोलन गांधीवादी आदातों का पालन करता था और अपने प्रयासों में अहिंसात्मकता और आदिवासी समुदायों के हित में काम किया।
- सफलता: एपिको आंदोलन के परिणामस्वरूप चिप्पकोडी में वन संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों के साथ साझा निर्णय पर पहुंचा और वहां की सरकारी नीतियों में सुधार किया गया।
एपिको आंदोलन ने भारतीय पर्यावरण आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है और यह दिखाता है कि अहिंसा और सामाजिक समरसता के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के लिए सशक्त प्रयास किए जा सकते हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन को समझाइए ।
नर्मदा बचाओ आंदोलन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय आंदोलन था, जिसका मुख्य उद्देश्य था नर्मदा नदी पर बनने वाले सर्वोच्च गंगा सागर परियोजना (SSP) या सरदार सरोवर बांध के विरोध में प्रदर्शन करना। यह आंदोलन भारतीय राज्य गुजरात और मध्य प्रदेश के कई क्षेत्रों में 1985 से 1990 तक चला। इस आंदोलन के नेतृत्व में मशहूर पर्यावरणीय वैज्ञानिक और गांधीवादी विचारक मेडा पाटकर थीं।
मुख्य पहलुओं की व्याख्या:
- नदी का संरक्षण: आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नर्मदा नदी के प्राकृतिक संरक्षण को बचाना था। सर्दार सरोवर बांध परियोजना ने नदी के प्राकृतिक स्थिति पर भारी प्रभाव डालने का अनुमान किया गया था, जिसके कारण जलवायु, पानी की उपलब्धता, और स्थानीय पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते थे।
- सामाजिक समरसता: आंदोलन ने सामाजिक समरसता के मूल्यों को बढ़ावा दिया और स्थानीय जनसंख्या, आदिवासी समुदायों और वनवासियों के हित में काम किया। यह आंदोलन सरकारी नीतियों में उनकी सहभागिता का माध्यम भी बना।
- सांसदीय समर्थन: आंदोलन में अनेक सांसदों, ग्रामीण संगठनों और अन्य समर्थकों ने भी अपना समर्थन दिया, जिन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख विषय बना दिया।
- सफलता: आंदोलन ने व्यापक प्रदर्शन, अहिंसात्मक सत्याग्रह और न्यायिक मुकाबले के माध्यम से कई सांसदीय और सामाजिक परिवर्तनों को प्राप्त किया। हालांकि, परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए नार्मदा निगम द्वारा उसके अनुमानित प्रभावों का आकलन और पर्यावरणीय समाधान की बाधाएँ उठाई गईं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने पर्यावरणीय आंदोलनों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का महत्व है, और इससे संबंधित समस्याओं को सुलझाने में सावधानी और जागरूकता की आवश्यकता है।
पर्यावरण विघटन और पर्यावरण प्रदूषण में अंतर समझाइए ।
पर्यावरण विघटन और पर्यावरण प्रदूषण दोनों ही पर्यावरण समस्याओं के प्रमुख कारण हैं, लेकिन इनके बीच मुख्य अंतर है:
- पर्यावरण विघटन (Environmental Degradation):
- पर्यावरण विघटन वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय सेवाओं की स्थिति में गिरावट होती है। इसमें वनों की कटाई, जल और जलवायु प्रदूषण, जैव विविधता की हानि, मृदा की उपजाऊता में कमी, और जलस्रोतों की उच्च तापमान से जुड़ी समस्याएं शामिल होती हैं।
- इसके प्रमुख कारण में असंतुलित विकास, अनुबंधित उपयोग और अत्यधिक उपभोगशीलता का प्रभाव शामिल होता है। यह प्रक्रिया सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय तत्वों के मिलन से प्रभावित होती है।
- पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution):
- पर्यावरण प्रदूषण वह स्थिति है जब वातावरण में विभिन्न प्रकार के अवांछनीय और अनुपयुक्त तत्वों का मिश्रण होता है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का प्रदूषण होता है। इसमें वायु, जल, मिट्टी, और शोर प्रदूषण शामिल होते हैं।
- प्रदूषण का मुख्य कारण विभिन्न उद्योगों, वाहनों, कृषि, और औद्योगिक क्रियाओं से निकलने वाले विषाणु, ध्वनि, या अन्य खतरनाक तत्वों का प्रकारित होता है। यह जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है और प्राकृतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।
संक्षेप में: पर्यावरण विघटन उस प्रक्रिया को दर्शाता है जिसमें पर्यावरण के संसाधनों की गिरावट होती है, जबकि पर्यावरण प्रदूषण उस स्थिति को दर्शाता है जब पर्यावरण में अनुपयुक्त तत्वों का मिश्रण होता है और उसके प्रभावों से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को बिगाड़ा जाता है।
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –पारिस्थितिकी संतुलन, पर्यावरण प्रदूषण
पारिस्थितिकी संतुलन (Ecological Balance)
पारिस्थितिकी संतुलन एक ऐसी स्थिति है जिसमें पृथ्वी के प्राकृतिक प्रक्रियाओं और जीवन के बीच संतुलन होता है। यह संतुलन जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके माध्यम से ही हमारे प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण होता है और जीवन की सम्भावनाएं बनी रहती हैं।
पारिस्थितिकी संतुलन के अंदर वनस्पति, जानवर, और उनके संघर्ष का संयोजन होता है। यह संघर्ष सुनिश्चित करता है कि हर प्राणी और पौधे को उनके जीवन के लिए आवश्यक संसाधन मिलते रहें। उदाहरण के रूप में, जंगलों में प्राणियों के संघर्ष के द्वारा खाद्य श्रृंखला बनी रहती है और इसके माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है।
इस संतुलन के बिना, प्राकृतिक प्रक्रियाएं अस्तित्व में खतरे में पड़ सकती हैं और इससे जीवन के लिए अनुकूल वातावरण का संकट उत्पन्न हो सकता है। जीवन के हर पहलू पर यह संतुलन महत्वपूर्ण है, चाहे वह वन्यजीवों की संरक्षण से लेकर मानव जीवन और उसकी संरचना तक का हो।
इसलिए, हमें पारिस्थितिकी संतुलन के संरक्षण और सुरक्षा का समझना महत्वपूर्ण है ताकि हम सभी को एक स्वस्थ और संतुलित प्राकृतिक परिवेश में जीने का अवसर मिल सके।
प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources)
प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन होते हैं जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं और वातावरण से प्राप्त होते हैं। ये संसाधन जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और मानव समुदाय की अविवाहित समृद्धि के लिए आवश्यक हैं।
प्राकृतिक संसाधनों में शामिल हैं जल, वायु, वनस्पति, खनिज, जलवायु, और जीवन। ये संसाधन जीवन के हर पहलू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, जल प्राकृतिक संसाधन है जो पीने के लिए, कृषि के लिए, और औद्योगिक उपयोग के लिए आवश्यक है। वायु भी हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें श्वास लेने और जीवन धारा के रूप में उपयोगी होता है।
हालांकि, इन संसाधनों का संरक्षण और समुरक्षण महत्वपूर्ण है। वनस्पति की कटाई और जल, वायु, और धरती पर प्रदूषण के कारण इन संसाधनों की स्थिति खतरे में है। हमें इन संसाधनों का सदुपयोग करने के साथ-साथ उनका संरक्षण भी करना होगा ताकि हमारे आने वाले पीढ़ियों को भी इनका उपयोग करने का अवसर मिल सके।
इसलिए, हमें प्राकृतिक संसाधनों का अच्छे से प्रबंधन करने और उनका संरक्षण करने की जिम्मेदारी है। यह हमारे भविष्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे ग्रह के लिए महत्वपूर्ण है ताकि संतुलित और समृद्ध वातावरण का आनंद लेने का अवसर सभी को मिल सके।
पर्यावरणीय शिक्षा की शिक्षण विधियों में प्रत्यक्ष उपागम की विशेषताएं लिखिए ।
पर्यावरण शिक्षा में “प्रत्यक्ष उपागम” का मतलब होता है कि छात्रों को वास्तविक अनुभवों के माध्यम से पर्यावरण से संबंधित ज्ञान प्राप्त कराया जाता है। इसमें छात्रों को अपने आसपास के पर्यावरण को देखने, समझने और महसूस करने का मौका दिया जाता है।
पर्यावरणीय शिक्षा की शिक्षण विधियों में प्रत्यक्ष उपागम का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें कुछ मुख्य विशेषताएँ शामिल हैं:
- सीखने की सामर्थ्य बढ़ाना: प्रत्यक्ष उपागम छात्रों को वास्तविकता में पर्यावरण से जुड़े अनुभव प्राप्त करने का मौका देता है। यह उनकी ज्ञान में गहराई और समझ में वृद्धि करता है जो किताबी शिक्षा से नहीं हो सकती।
- प्रेरणा प्रदान करना: प्रत्यक्ष उपागम छात्रों को प्रेरित करता है कि वे पर्यावरण संरक्षण और समस्याओं के समाधान में सक्रिय भागीदार बनें। यह उन्हें वास्तविक जीवन में सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करता है।
- प्रकार्यात्मक शिक्षा: प्रत्यक्ष उपागम विभिन्न क्रियाओं और प्रयोगों के माध्यम से छात्रों को सिखाता है कि कैसे पर्यावरणीय विषयों को अपने दैनिक जीवन में लागू किया जा सकता है। इससे छात्रों का अध्ययन प्राकृतिक विकल्पों के साथ जुड़ता है और उनकी सोच में नई दिशाएँ खोलता है।
- व्यक्तिगत अनुभवों का अध्ययन: प्रत्यक्ष उपागम छात्रों को अपने व्यक्तिगत अनुभवों को पर्यावरणीय शिक्षा के संदर्भ में अध्ययन करने का अवसर देता है। इससे वे अपने विचारों और अनुभवों को साझा कर सकते हैं और एक-दूसरे से सीख सकते हैं।
- स्थायी सीखने का प्रदान: प्रत्यक्ष उपागम छात्रों को स्थायी सीखने का मौका देता है। वे जो कुछ वे प्राकृतिक संसाधनों के साथ करते हैं, उससे वे उनके महत्व और संरक्षण के बारे में गहरी समझ प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार, प्रत्यक्ष उपागम पर्यावरणीय शिक्षा के प्रभावी अंशों में से एक है जो छात्रों को अधिक सक्रिय, संवेदनशील और प्रभावी नागरिक बनाता है।
प्राकृतिक क्लब (natural club) क्या हैं इसके उद्देश्य लिखिए ।
प्राकृतिक क्लब (Natural Club)
प्राकृतिक क्लब एक संगठन होता है जो पर्यावरण संरक्षण और समस्याओं के समाधान के लिए छात्रों और समुदाय के बीच एक मंच प्रदान करता है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित होते हैं:
- पर्यावरण शिक्षा प्रदान करना: प्राकृतिक क्लब का प्रमुख उद्देश्य छात्रों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर जागरूक करना और उन्हें इसे संबंधित समस्याओं के समाधान में सक्रिय बनाना होता है।
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: ये क्लब छात्रों को वास्तविक अनुभवों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझाने के लिए प्रेरित करता है। वे वन्य जीवन, जलवायु परिवर्तन, और जल संसाधनों के संरक्षण में अपनी भूमिका निभाते हैं।
- सामुदायिक संघर्ष के समाधान में सहायता: प्राकृतिक क्लब छात्रों को समुदाय के साथ मिलकर स्थानीय स्तर पर पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान करता है। यह उन्हें वास्तविक जीवन में सामाजिक सद्भावना और सहभागिता की भावना विकसित करता है।
- स्वच्छता और पर्यावरणीय संस्कृति को बढ़ावा देना: ये क्लब स्वच्छता अभियानों और पर्यावरणीय संस्कृति को प्रोत्साहित करता है। छात्र सदस्य उनके स्कूल या कॉलेज के कैम्पस को हरित स्थल बनाने में सक्रिय भाग लेते हैं।
- सामूहिक कार्यों में सहयोग: प्राकृतिक क्लब छात्रों को सामूहिक कार्यों में सहयोग करने के लिए प्रेरित करता है, जैसे कि पेड़-पौधे लगाना, सामुदायिक श्रमदान कार्यक्रम, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अभियानों में भाग लेना।
इन उद्देश्यों के माध्यम से, प्राकृतिक क्लब संगठन छात्रों को पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाने और समुदाय में पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय रहने के लिए प्रेरित करता है।
पर्यावरण शिक्षण में पाठ्य सहगामी क्रियाओं ( co curriculum activities)को समझाइए ।
पर्यावरण शिक्षण में पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ (Co-curricular Activities) उन गतिविधियों को संकेत करती हैं जो कक्षा के अध्ययन के बाहर होती हैं और छात्रों के पर्यावरणीय ज्ञान और समझ में वृद्धि करने का उद्देश्य रखती हैं। ये गतिविधियाँ छात्रों को व्यक्तिगत, सामाजिक, और शैक्षिक स्तर पर पर्यावरण के महत्व को समझाने और उसमें सक्रिय भाग लेने का अवसर प्रदान करती हैं।
कुछ मुख्य प्रकार की पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ हैं:
- पर्यावरणीय सफाई अभियान: ये अभियान छात्रों को स्कूल या कॉलेज के कैम्पस में पर्यावरणीय स्वच्छता के महत्व को समझाता है। छात्र सदस्य पेड़-पौधे लगाने, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अभियानों में भाग लेने, और विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर स्वच्छता अभियानों का समर्थन करते हैं।
- पर्यावरणीय अध्ययन यात्राएं: छात्रों को विभिन्न पर्यावरणीय स्थलों पर गई यात्राओं के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवन, और प्राकृतिक जीवन की समझ को बढ़ाने का मौका मिलता है। इससे वे वास्तविक अनुभव प्राप्त करते हैं और पर्यावरण के प्रति अपनी जागरूकता बढ़ाते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण और विचारशीलता के व्यापक अभियान: ये अभियान छात्रों को पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, और वैश्विक उद्यानों के संरक्षण के मुद्दों के बारे में जागरूक करते हैं। छात्र सदस्य विभिन्न कार्यक्रमों, संवाद, और प्रदर्शनी में भाग लेते हैं जो पर्यावरण के मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करते हैं।
- पर्यावरणीय प्रतियोगिताएँ और कार्यक्रम: ये छात्रों को अपनी जानकारी, कला, और सृजनात्मकता का प्रदर्शन करने का मौका देते हैं जो पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान में योगदान कर सकते हैं।
- पर्यावरणीय सम्मेलन और वाद-विवाद: ये गतिविधियाँ छात्रों को विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद करने और अपने विचारों को साझा करने का मौका प्रदान करती हैं, जिसमें पर्यावरणीय मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया जा सकता है।
इन सभी क्रियाओं के माध्यम से पाठ्य-सहगामी गतिविधियाँ पर्यावरण शिक्षा में छात्रों को न केवल सिक्के के दो पहलूओं को समझने में मदद करती हैं, बल्कि उन्हें अपने पर्यावरण के प्रति भी सचेत करती हैं।
EOSE / ENVIS पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
EOSE (Ecologically or Environmentally Significant Area) एक ऐसा क्षेत्र होता है जो प्राकृतिक संसाधनों के लिए विशेष महत्व रखता है और उनकी संरक्षण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन क्षेत्रों में वन्य जीवन, जलवायु, जलस्रोत, और प्राकृतिक प्रक्रियाएं संरक्षित रहती हैं, जिनका महत्व पर्यावरणीय संतुलन और भूमिगत सेवाओं के लिए होता है।
EOSE के प्रमुख उद्देश्य शामिल होते हैं:
- प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण: EOSE क्षेत्रों का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण और सुरक्षा होता है। इनमें वन्य जीवन, पौधे, जलस्रोत, और अन्य प्राकृतिक विशेषताएं शामिल हो सकती हैं जिन्हें सुरक्षित रखने के लिए कठोर निर्देश और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
- प्राकृतिक विविधता की संरक्षा: ये क्षेत्र प्राकृतिक विविधता और जीवों के आवास की स्थिति को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें संरक्षित रखने से अनुपातित विकास और विनाश को रोकने में मदद मिलती है।
- पर्यावरणीय सेवाओं का प्रबंधन: EOSE क्षेत्रों के माध्यम से पर्यावरणीय सेवाएं जैसे कि जल संसाधन, वायु संशोधन, और वन्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण संरक्षण प्रबंधित किए जाते हैं। ये सेवाएं मानव समुदायों के लिए आवश्यक होती हैं और उनकी समृद्धि और स्थिरता के लिए अहम रोल निभाती हैं।
EOSE के माध्यम से समाज को प्राकृतिक संसाधनों की अवधारणा और उनके महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलती है, जिससे कि हम संतुलित और सहयोगी पर्यावरण में रह सकें।
ENVIS (पर्यावरण सूचना प्रणाली), जिसकी स्थापना 1982-83 (षष्ठ योजना) से हुई थी, विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर वैज्ञानिक, तकनीकी और अर्ध-तकनीकी जानकारी प्रदान करके सरकार के सभी स्तरों में नीति निर्माण और पर्यावरण प्रबंधन के हितों की सेवा करती आई है। इसका उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार के लिए निर्णय लेने वालों को समर्थन प्रदान करना रहा है ताकि सभी जीवों के अच्छे जीवन की गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सके। यहां तक कि राष्ट्रीय प्रयासों के एकीकरण को वेब-सक्षम पर्यावरण सूचना संग्रहण, संग्रहण, संग्रहण, पुनःप्राप्ति और सभी संबंधित व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए सुनिश्चित किया जाता है, जिनमें नीति निर्माता, निर्णय लेने वाले, शोधकर्ता, वैज्ञानिक और जनता शामिल हैं।
इस स्कीम के दीर्घकालिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग में एक संग्रहण और प्रसारण केंद्र बनाना।
- पर्यावरण प्रकृति के सूचना अधिग्रहण, प्रसंस्करण, भंडारण, पुनःप्राप्ति और प्रसारण के शिस्तम को तकनीक के नवीनतम तत्वों से सजाना।
- पर्यावरण सूचना प्रौद्योगिकी में अनुसंधान, विकास और नवाचार को समर्थन और बढ़ावा देना।
इसके छोटे-दीर्घकालिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- वर्तमान आवश्यकताओं के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण सूचना सेवा प्रदान करना और भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होना।
- सूचना को तेजी से उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाने के उद्देश्य से भंडारण, पुनःप्राप्ति और प्रसारण क्षमताओं को विकसित करना।
- पर्यावरण से संबंधित सूचना के आपसी एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संबंध स्थापित और प्रोत्साहन करना।
- पर्यावरणीय सूचना प्रसंस्करण और उपयोग क्षमताओं को बढ़ाने के लिए शिक्षा और कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना।
- विकसित देशों के बीच पर्यावरण से संबंधित सूचना के विनिमय को बढ़ावा देना।
लेख पढ़ने के लिए आपका आभार 😁🙏 किसी प्रकार की त्रुटि या अन्य प्रश्न के उत्तर के लिए मुझे comment करे ।