gender school and society notes in hindi

gender school and society notes

gender school and society notes के कुछ महत्वपूर्ण टॉपिक को यहां पर लिखा गया है।

इस पोस्ट में आपको निम्न क्वेश्चनों के आंसर मिलेंगे

  1. लिंग की अवधारणा एवं उसका अर्थ लिखिए ।
  2. स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए मूल जीवन कौशल क्या हैं तथा उनके लाभ बताइए। जीवन कौशल का लैंगिकता में संबंध समझाइए।
  3. पितृसत्तात्मक तथा नारीवाद की अवधारणा समझाइए। यह कैसे लैंगिक विभेद से संबंधित है?
  4. यौन शिक्षा क्या है? इसके स्रोत तथा महत्व लिखिए। इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कौन सी आधुनिक युक्तियां अपनाई जा सकती हैं? परिवार, विद्यालय तथा सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न को किस प्रकार रोका जा सकता है?
  5. लिंग एवं जेंडर की अवधारणा स्पष्ट करते हुए उन दोनों में अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

Q1. लिंग की अवधारणा स्पष्ट करते हुए उसका अर्थ लिखिए ?

लिंग की अवधारणा
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , परंतु प्रारंभिक मनुष्य सामाजिक नहीं था वह असभ्य और संगठित था , किंतु जब मनुष्य में चेतना का विकास हुआ तब उसने संगठित रहना तथा आपसी संबंध बनाना प्रारंभ किया तभी से मनुष्य ने समाजीकरण की दिशा को प्रशस्त किया । समाज को अधिक व्यवस्थित करने हेतु मानव को स्त्री व पुरुष दो लिंगों में विभाजित किया गया। तथा उनके मूल व्यवहार के आधार पर उनके कार्य , नियम, उपयोगिता आदि का विभाजन कर दिया गया । इस प्रकार लिंग विस्तृत सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रसंग का एक भाग है ।
लिंग का अर्थ
व्याकरण में जिस शब्द से स्त्री या पुरुष के होने का बोध हो लिंग कहते हैं लिंग कहते हैं ।


वेस्ट तथा जिम्मेरमन के अनुसार ” लिंग एक व्यक्ति के लक्षण नहीं है यह सामाजिक परिस्थितियों का एक उदगमी लक्षण है एवं समाज के मौलिक विभाजन का एक तर्कसंगत साधन है । “
इस प्रकार लिंग वास्तव में समाजीकरण के दौरान की गई एक व्यवस्था है जिसमें जैविक विभिन्नता के आधार पर उनके विभिन्न रुचिया व व्यवहार के आधार पर  स्त्री व पुरुष का विभाजन किया गया हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए मूल जीवन कौशल क्या हैं तथा उनके लाभ बताइए। जीवन कौशल का लैंगिकता में संबंध समझाइए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा दिए गए मूल जीवन कौशल:

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निम्नलिखित 10 जीवन कौशलों को महत्वपूर्ण माना है:

  1. निर्णय लेना (Decision Making): समस्याओं का समाधान करने और उपलब्ध विकल्पों में से सही निर्णय लेने की क्षमता।
  2. समस्या समाधान (Problem Solving): समस्याओं को पहचानने और उन्हें प्रभावी ढंग से हल करने की क्षमता।
  3. रचनात्मक सोच (Creative Thinking): नए और रचनात्मक तरीकों से समस्याओं और स्थितियों का समाधान करने की क्षमता।
  4. संकट प्रबंधन (Critical Thinking): जानकारी का विश्लेषण और मूल्यांकन करने की क्षमता।
  5. संचार कौशल (Effective Communication): स्पष्ट और प्रभावी तरीके से अपने विचार और भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता।
  6. अंतरवैयक्तिक संबंध (Interpersonal Relationships): स्वस्थ और सकारात्मक संबंध बनाने और उन्हें बनाए रखने की क्षमता।
  7. आत्म-जागरूकता (Self-Awareness): अपने आप को और अपनी भावनाओं, उद्देश्यों और लक्ष्यों को समझने की क्षमता।
  8. सहानुभूति (Empathy): दूसरों की भावनाओं और परिस्थितियों को समझने और अनुभव करने की क्षमता।
  9. भावनात्मक प्रबंधन (Emotional Regulation): अपनी भावनाओं को पहचानने, समझने और नियंत्रित करने की क्षमता।
  10. तनाव प्रबंधन (Stress Management): तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने और उन्हें प्रबंधित करने की क्षमता।

जीवन कौशलों के लाभ:

  1. स्वास्थ्य सुधार: जीवन कौशल लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने, नशा मुक्त रहने और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।
  2. सामाजिक सामंजस्य: ये कौशल सामाजिक रिश्तों को सुधारते हैं और सामाजिक समर्थन को मजबूत करते हैं।
  3. व्यक्तिगत विकास: आत्म-जागरूकता और आत्म-प्रबंधन से व्यक्ति अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।
  4. समस्या समाधान: ये कौशल समस्याओं का रचनात्मक और प्रभावी समाधान प्रदान करते हैं।
  5. संप्रेषण दक्षता: जीवन कौशल से संचार कौशल में सुधार होता है, जिससे सामाजिक और पेशेवर जीवन में सफलता मिलती है।

जीवन कौशल का लैंगिकता में संबंध:

  1. लैंगिक समानता: जीवन कौशल, जैसे सहानुभूति और अंतरवैयक्तिक संबंध, लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हैं। ये कौशल व्यक्तियों को दूसरों की लैंगिक पहचान और अनुभवों को समझने में मदद करते हैं।
  2. सशक्तिकरण: निर्णय लेने और समस्या समाधान कौशल विशेष रूप से महिलाओं और अन्य लैंगिक अल्पसंख्यकों को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होते हैं।
  3. स्वास्थ्य शिक्षा: जीवन कौशल जैसे आत्म-जागरूकता और संचार कौशल लैंगिक स्वास्थ्य और यौनिकता पर खुली और ईमानदार बातचीत को प्रोत्साहित करते हैं।
  4. दुरुपयोग और हिंसा की रोकथाम: तनाव प्रबंधन और भावनात्मक प्रबंधन कौशल लैंगिक हिंसा और दुरुपयोग को रोकने में मदद करते हैं। ये कौशल व्यक्तियों को स्वस्थ तरीके से संघर्ष को संभालने और अपने भावनाओं को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
  5. सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन कौशल, जैसे रचनात्मक सोच और संकट प्रबंधन, लैंगिकता के प्रति समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं, जिससे सभी लिंगों के लोगों के लिए एक समावेशी और सम्मानजनक वातावरण बनता है।

इस प्रकार, जीवन कौशल व्यक्ति को न केवल व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सफल बनाते हैं, बल्कि लैंगिकता और लैंगिक समानता के मुद्दों को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।

पितृसत्तात्मक तथा नारीवाद की अवधारणा समझाइए। यह कैसे लैंगिक विभेद से संबंधित है?

पितृसत्तात्मकता (Patriarchy) की अवधारणा:

पितृसत्तात्मकता एक सामाजिक प्रणाली है जिसमें पुरुषों का प्रभुत्व और नियंत्रण होता है। इस प्रणाली में परिवार, समुदाय और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों को प्राथमिकता और श्रेष्ठता दी जाती है। यह संरचना पुरुषों को सत्ता, अधिकार और संसाधनों पर प्रमुख नियंत्रण प्रदान करती है, जबकि महिलाओं और अन्य लिंगों को निम्नतर स्थान पर रखती है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था में पुरुषों की वर्चस्व वाली सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाएँ महिलाओं और अन्य लिंगों के अधिकारों और स्वतंत्रता को सीमित करती हैं।

नारीवाद (Feminism) की अवधारणा:

नारीवाद एक सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन है जो लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों की वकालत करता है। नारीवाद का उद्देश्य पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय, भेदभाव और असमानता को समाप्त करना है। यह आंदोलन महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। नारीवाद कई रूपों में हो सकता है, जैसे कि उदारवादी नारीवाद, कट्टरपंथी नारीवाद, समाजवादी नारीवाद, आदि, लेकिन सभी का मुख्य उद्देश्य लैंगिक समानता की प्राप्ति है।

लैंगिक विभेद से संबंध:

  1. पितृसत्तात्मकता और लैंगिक विभेद:
    • असमानता: पितृसत्तात्मक प्रणाली में महिलाओं और अन्य लिंगों के साथ भेदभाव और असमानता की स्थितियाँ बनती हैं। यह प्रणाली उन्हें समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अवसरों, अधिकारों और संसाधनों से वंचित करती है।
    • रोल विभाजन: पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों और महिलाओं के लिए कठोर और स्थिर भूमिकाएँ निर्धारित की जाती हैं। पुरुषों को परिवार और समाज के मुख्य प्रदाता और रक्षक के रूप में देखा जाता है, जबकि महिलाओं को घरेलू कार्य और बच्चों की देखभाल तक सीमित कर दिया जाता है।
    • दमन: पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं और अन्य लिंगों का दमन और शोषण होता है। उन्हें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर और निर्भर बनाया जाता है।
  2. नारीवाद और लैंगिक विभेद:
    • समानता की वकालत: नारीवाद लैंगिक समानता की वकालत करता है और समाज में महिलाओं और अन्य लिंगों के साथ होने वाले भेदभाव और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करता है।
    • सशक्तिकरण: नारीवाद महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें समाज के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व और निर्णय लेने के अवसर प्रदान करने का प्रयास करता है।
    • जागरूकता और शिक्षा: नारीवाद शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लैंगिक विभेद को समाप्त करने का प्रयास करता है। यह लैंगिक असमानता के मुद्दों को उठाता है और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता है।

उदाहरण:

  1. शिक्षा: पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती, जबकि नारीवाद लड़कियों की शिक्षा और शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा देने का समर्थन करता है।
  2. कार्यस्थल: पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को कार्यस्थल पर समान वेतन और अवसर नहीं मिलते, जबकि नारीवाद समान वेतन और अवसरों की वकालत करता है।
  3. घरेलू भूमिकाएँ: पितृसत्तात्मक समाज में घरेलू कार्य महिलाओं की जिम्मेदारी मानी जाती है, जबकि नारीवाद समान घरेलू जिम्मेदारियों और साझेदारी की वकालत करता है।

इस प्रकार, पितृसत्तात्मकता और नारीवाद लैंगिक विभेद के दो विपरीत दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। पितृसत्तात्मकता लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती है, जबकि नारीवाद इस असमानता को समाप्त करने का प्रयास करता है।

यौन शिक्षा क्या है? इसके स्रोत तथा महत्व लिखिए। इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कौन सी आधुनिक युक्तियां अपनाई जा सकती हैं? परिवार, विद्यालय तथा सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न को किस प्रकार रोका जा सकता है?

यौन शिक्षा क्या है?

यौन शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति यौन स्वास्थ्य, यौनिकता, यौन संबंधों, और यौन अधिकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। इसका उद्देश्य लोगों को सुरक्षित, स्वस्थ और जिम्मेदार यौन व्यवहार के लिए तैयार करना है। यौन शिक्षा यौनिकता के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती है और व्यक्तियों को यौन संबंधों के बारे में सही निर्णय लेने के लिए सक्षम बनाती है।

यौन शिक्षा के स्रोत:

  1. परिवार: माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य बच्चों को यौन शिक्षा के प्रारंभिक स्रोत हो सकते हैं। वे बच्चों को यौनिकता और स्वास्थ्य के बारे में सही जानकारी और मूल्यों को सिखा सकते हैं।
  2. विद्यालय: स्कूलों में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में यौन शिक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षक और स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम इसके मुख्य स्रोत होते हैं।
  3. स्वास्थ्य सेवाएं: डॉक्टर, नर्स, और स्वास्थ्य क्लीनिक यौन स्वास्थ्य और यौनिकता पर जानकारी और परामर्श प्रदान करते हैं।
  4. मीडिया और इंटरनेट: टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट, और सोशल मीडिया भी यौन शिक्षा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। सही और विश्वसनीय ऑनलाइन संसाधन यौन शिक्षा में मददगार हो सकते हैं।
  5. सामुदायिक संगठन: गैर-सरकारी संगठन और समुदाय आधारित संगठन भी यौन शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यौन शिक्षा का महत्व:

  1. स्वास्थ्य संरक्षण: यौन शिक्षा लोगों को यौन संचारित रोगों (STDs) और अनचाहे गर्भधारण से बचने के लिए आवश्यक जानकारी और संसाधन प्रदान करती है।
  2. सुरक्षित व्यवहार: यह सुरक्षित यौन संबंधों और स्वस्थ यौन व्यवहार को बढ़ावा देती है।
  3. जानकारी और निर्णय: यौन शिक्षा व्यक्ति को सही जानकारी और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है।
  4. सहमति और अधिकार: यह लोगों को यौनिकता और संबंधों में सहमति और अधिकारों के महत्व के बारे में जागरूक बनाती है।
  5. समाज में सकारात्मक बदलाव: यौन शिक्षा समाज में यौनिकता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और समझ को बढ़ावा देती है, जिससे यौन उत्पीड़न और भेदभाव को कम किया जा सकता है।

यौन शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के आधुनिक युक्तियां:

  1. डिजिटल प्लेटफॉर्म: ऑनलाइन कोर्स, वेबिनार, और सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम से यौन शिक्षा को व्यापक रूप से प्रचारित किया जा सकता है।
  2. इंटरएक्टिव ऐप्स: यौन शिक्षा के लिए इंटरएक्टिव मोबाइल ऐप्स और गेम्स विकसित करना, जो युवाओं को आकर्षित कर सकें।
  3. वीडियो सामग्री: यूट्यूब और अन्य वीडियो प्लेटफॉर्म पर शैक्षिक वीडियो और डॉक्युमेंटरी बनाना और साझा करना।
  4. सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर: लोकप्रिय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और ब्लॉगर को यौन शिक्षा के संदेश को फैलाने के लिए प्रेरित करना।
  5. वर्चुअल रियलिटी: वर्चुअल रियलिटी (VR) के माध्यम से यौन शिक्षा के इमर्सिव और इंटरएक्टिव अनुभव प्रदान करना।

परिवार, विद्यालय तथा सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न को रोकने के उपाय:

  1. परिवार:
    • संवाद: माता-पिता को अपने बच्चों के साथ यौनिकता और सहमति के बारे में खुली और ईमानदार बातचीत करनी चाहिए।
    • प्रशिक्षण: माता-पिता को यौन शिक्षा के महत्व और बच्चों को सुरक्षित रखने के तरीकों के बारे में प्रशिक्षण देना।
    • सुरक्षा दिशानिर्देश: बच्चों को अपने शरीर की सुरक्षा के बारे में जानकारी देना और उन्हें असहज स्थिति में ‘ना’ कहने के लिए प्रोत्साहित करना।
  2. विद्यालय:
    • समावेशी पाठ्यक्रम: स्कूल पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल करना, जो यौन स्वास्थ्य, सहमति, और यौन उत्पीड़न के बारे में जानकारी प्रदान करे।
    • शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों को यौन शिक्षा और उत्पीड़न रोकथाम पर प्रशिक्षण देना।
    • सुरक्षा नीतियाँ: स्कूल में यौन उत्पीड़न के खिलाफ स्पष्ट नीतियाँ और शिकायत तंत्र स्थापित करना।
  3. सार्वजनिक स्थान:
    • जागरूकता अभियान: सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना।
    • सुरक्षा प्रावधान: सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन और सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा प्रावधानों को मजबूत करना।
    • कानूनी सख्ती: यौन उत्पीड़न के खिलाफ सख्त कानूनी प्रावधान और त्वरित न्याय प्रक्रिया सुनिश्चित करना।

इन उपायों के माध्यम से यौन शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सकती है और परिवार, विद्यालय और सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है।

लिंग एवं जेंडर की अवधारणा स्पष्ट करते हुए उन दोनों में अंतर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

लिंग (Sex) एवं जेंडर (Gender) की अवधारणा:

लिंग (Sex):

लिंग एक जैविक अवधारणा है जो शारीरिक, आनुवांशिक, और हार्मोनल विशेषताओं के आधार पर निर्धारित होती है। यह व्यक्ति के जन्म के समय उसके जननांगों और क्रोमोसोमों के आधार पर पुरुष (Male), महिला (Female), या अंतरलिंग (Intersex) के रूप में वर्गीकृत होती है।

  • जैविक विशेषताएँ: पुरुषों के पास XY क्रोमोसोम होते हैं और वे आमतौर पर अंडकोष और पुरुष हार्मोन (जैसे टेस्टोस्टेरोन) का उत्पादन करते हैं। महिलाओं के पास XX क्रोमोसोम होते हैं और वे अंडाशय और महिला हार्मोन (जैसे एस्ट्रोजन) का उत्पादन करती हैं।
  • उदाहरण: एक व्यक्ति जिसका जन्म पुरुष जननांगों और XY क्रोमोसोम के साथ हुआ है, उसे जैविक रूप से पुरुष (Male) कहा जाएगा।

जेंडर (Gender):

जेंडर एक सामाजिक और सांस्कृतिक अवधारणा है जो व्यक्तियों की सामाजिक भूमिकाओं, अपेक्षाओं, व्यवहारों, और पहचान पर आधारित होती है। यह समाज द्वारा निर्धारित करता है कि पुरुषों और महिलाओं से किस प्रकार का व्यवहार अपेक्षित है और वे समाज में किस प्रकार की भूमिकाएँ निभाएंगे।

  • सामाजिक विशेषताएँ: जेंडर पहचान और अभिव्यक्ति समाज की सांस्कृतिक मान्यताओं और परंपराओं पर निर्भर करती है। यह व्यक्ति के आत्म-परिभाषा (जैसे पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी) और समाज में उनके व्यवहार और भूमिका से संबंधित होती है।
  • उदाहरण: एक व्यक्ति जो जन्म से महिला (Female) है, लेकिन समाज में स्वयं को पुरुष (Male) के रूप में पहचानता है और पुरुष के रूप में जीवन जीता है, उसे ट्रांसजेंडर पुरुष कहा जाएगा।

लिंग और जेंडर के बीच अंतर:

  1. जैविक बनाम सामाजिक:
  • लिंग: यह जैविक और शारीरिक विशेषताओं पर आधारित होता है।
  • जेंडर: यह सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिकाओं और पहचान पर आधारित होता है।
  1. निर्धारण:
  • लिंग: जन्म के समय जननांगों और क्रोमोसोमों के आधार पर निर्धारित होता है।
  • जेंडर: व्यक्ति की आत्म-परिभाषा और समाज की अपेक्षाओं के आधार पर निर्धारित होता है।
  1. परिवर्तन:
  • लिंग: जैविक रूप से स्थिर होता है, हालांकि चिकित्सा प्रक्रियाओं के माध्यम से परिवर्तन संभव है।
  • जेंडर: यह समय और संस्कृति के साथ बदल सकता है और व्यक्ति की आत्म-परिभाषा पर निर्भर करता है।

उदाहरण:

  1. लिंग का उदाहरण:
  • एक व्यक्ति जिसका जन्म पुरुष जननांगों और XY क्रोमोसोम के साथ हुआ है, उसे जैविक रूप से पुरुष कहा जाएगा। यह व्यक्ति हार्मोनल और शारीरिक रूप से पुरुष विशेषताओं का प्रदर्शन करेगा।
  1. जेंडर का उदाहरण:
  • एक व्यक्ति जिसका जन्म महिला जननांगों और XX क्रोमोसोम के साथ हुआ है, लेकिन वह समाज में पुरुष के रूप में पहचान रखता है और पुरुष के रूप में जीवन जीता है, उसे ट्रांसजेंडर पुरुष कहा जाएगा।

इस प्रकार, लिंग और जेंडर दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं जो व्यक्ति की जैविक विशेषताओं और सामाजिक पहचान को परिभाषित करती हैं। ये दोनों अवधारणाएँ एक-दूसरे से संबंधित तो हैं, लेकिन उनके आधार और निर्धारण के तरीके अलग-अलग होते हैं।

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