इंदिरा सागर बांध परियोजना

Indira Sagar dam project

Indira Sagar Dam Project : इंदिरा सागर बांध परियोजना मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के पुनासा तहसील के नर्मदा नगर ग्राम में स्थित है। इसे भारत की सबसे प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाओं में से एक माना जाता है। यह परियोजना मुख्यतः जलविद्युत उत्पादन, सिंचाई और जल प्रबंधन के उद्देश्यों से बनाई गई है। इसकी शुरुआत 1984 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा की गई थी, और इसका उत्पादन वर्ष 2005 से प्रारंभ हुआ।

मुख्य बिंदु और तकनीकी विवरण:

  • स्थापना वर्ष: परियोजना की शुरुआत 1984 में की गई और इसे पूरी तरह से 2005 में चालू किया गया।
  • बिजली उत्पादन क्षमता: इंदिरा सागर परियोजना की विद्युत उत्पादन क्षमता 1,000 मेगावाट (MW) है, जो इसे मध्य प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में ऊर्जा आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण बनाती है।
  • बांध की ऊंचाई और लंबाई: इस बांध की ऊंचाई 92 मीटर और लंबाई 650 मीटर है।
  • सिंचाई क्षमता: इंदिरा सागर बांध परियोजना के द्वारा 2.30 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई की जाती है। यह क्षमता क्षेत्र की कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • जल संग्रहण क्षमता: बांध की जल संचय क्षमता 12.22 अरब घन मीटर है, जो इसे देश के सबसे बड़े जलाशयों में से एक बनाती है।
  • विस्थापन: इस परियोजना के कारण लगभग 2.50 लाख लोग विस्थापित हुए हैं, जो इसे एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन बनाता है। पुनर्वास और विस्थापन प्रबंधन परियोजना का एक प्रमुख हिस्सा रहा है।

सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव:

इंदिरा सागर परियोजना ने नर्मदा नदी के आसपास के क्षेत्रों में बिजली और सिंचाई की आवश्यकताओं को पूरा किया है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिला है। हालांकि, इसका एक नकारात्मक पहलू यह है कि इससे बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और कई पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी सामने आईं। पुनर्वास कार्यक्रम के तहत प्रभावित लोगों के लिए नई बस्तियों और सुविधाओं का विकास किया गया।

परीक्षा उपयोगी तथ्य:

स्थान: पुनासा तहसील, नर्मदा नगर ग्राम, खंडवा जिला, मध्य प्रदेश

शुरुआत वर्ष: 1984

बिजली उत्पादन क्षमता: 1000 मेगावाट

बांध की ऊंचाई: 92 मीटर

बांध की लंबाई: 650 मीटर

सिंचाई क्षमता: 2.30 लाख हेक्टेयर

विस्थापन: 2.50 लाख लोग

इंदिरा सागर बांध परियोजना न केवल ऊर्जा उत्पादन और सिंचाई के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है, बल्कि यह क्षेत्र में जल प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण और सामाजिक आर्थिक विकास के लिए भी जरूरी है। हालांकि, परियोजना से जुड़ी विस्थापन और पर्यावरणीय चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इसके समग्र विकास में संतुलन बनाना जरूरी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *