जीन प्याजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

बच्चे नन्हे वैज्ञानिक होते हैं l

जीन प्याजे

जीन पियाजे (1896-1980), स्विट्जरलैंड के एक प्रमुख विकासात्मक मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने मानव मस्तिष्क के विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्याजे के सिद्धांतों के अनुसार, बच्चों की बुद्धि समय के साथ विकसित होती है।

सिद्धांत में चार अवस्थाएं बताई गई हैं:

संवेदी-पेशीय अवस्था (0 से 2 वर्ष)
पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 से 6 वर्ष)
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (6 से 11 वर्ष)
औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (11+ वर्ष से किशोरावस्था तक)

पियाजे के अनुसार, बच्चे प्रारंभिक जीवन से ही अपने आसपास के वातावरण के साथ अन्तःक्रिया की समझ विकसित करते हैं। इससे वह ज्ञान का अर्जन करते हैं और संवेदनशीलता का विकास करते हैं।

पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले चार कारक

जैविक परिपक्वता
सक्रिय अन्वेषण
सामाजिक अनुभव
संतुलन

जैविक परिपक्वता के अनुसार शारीरिक व मानसिक रूप से अपरिपक्व व्यक्ति वंचित व्यवहार नहीं कर सकता इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए प्याज ने इसे स्वीकार कर दिया।

दूसरे स्तर में बालक भौतिक वातावरण के साथ अपने अनुभव के मध्य तार्किक संबंध बनाता है तथा अपना अधिगम करता है ।

तृतीय स्तर सामाजिक वातावरण से अनुभव में बालक सामाजिक सदस्य के रूप में विभिन्न प्रकार की क्रियाएं करता है तथा सहयोग प्रतिस्पर्धा परंपरा एवं लोकाचार जैसे विभिन्न पक्षों को सम्मिलित करता है । प्याज ने सामाजिक अनुभव को सीखने के लिए भाषा के समाजीकरण को आधार माना है ।

चतुर्थ स्तर संतुलन में उपरोक्त तीनों स्तरों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाता है इस प्रक्रिया में आत्मिकरण समायोजन एवं अनुकूलन का अहम योगदान होता है ।

उनके अनुसार, बच्चे न केवल ज्ञान का अर्जन करते हैं, बल्कि उनका मानसिक दृष्टिकोण भी विकसित होता है। जीन प्याजे के यह सिद्धांत आज भी शिक्षा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को समझने में हमें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।


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