LIFE AND CONTRIBUTION OF ENVIRONMENTAL ACTIVISTS

LIFE AND CONTRIBUTION OF ENVIRONMENTAL ACTIVISTS

LIFE AND CONTRIBUTION OF ENVIRONMENTAL ACTIVISTS :पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत ने कई ऐसे व्यक्तित्वों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने अथक प्रयासों और समर्पण से न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया में पर्यावरणीय जागरूकता और संरक्षण को बढ़ावा दिया है। इस लेख में हम महेश चंद्र मेहता, सुंदरलाल बहुगुणा, वंदना शिवा, मेनका गांधी, और शिवराम कारंथ जैसे महान पर्यावरणविदों के जीवन और उनके महत्वपूर्ण योगदान के बारे में विस्तार से जानेंगे। इन व्यक्तियों ने विभिन्न तरीकों से पर्यावरण के प्रति अपने अटूट समर्पण को साबित किया है, चाहे वह कानूनी लड़ाई के माध्यम से हो, सामाजिक आंदोलनों के द्वारा, जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयासों से, पशु अधिकारों की रक्षा करके, या साहित्य और शिक्षा के माध्यम से जागरूकता फैलाकर। आइए, इन प्रेरणादायक व्यक्तित्वों के जीवन के सफर और उनके योगदानों पर एक विस्तृत नजर डालते हैं।

महेश चंद्र मेहता

महेश चंद्र मेहता एक प्रमुख भारतीय पर्यावरणविद् और वकील हैं, जो पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकारों के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं। यहाँ उनके जीवन और कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • महेश चंद्र मेहता का जन्म 12 अक्टूबर 1946 को जम्मू और कश्मीर में हुआ था।
  • उन्होंने जम्मू विश्वविद्यालय से स्नातक और कानून की डिग्री प्राप्त की।

कानूनी करियर और पर्यावरण संरक्षण

  • मेहता ने अपने कानूनी करियर की शुरुआत दिल्ली उच्च न्यायालय से की और बाद में सुप्रीम कोर्ट में वकालत की।
  • वे भारतीय पर्यावरण आंदोलन में एक प्रमुख आवाज बने और कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मामलों में जनहित याचिकाएं दायर कीं।

प्रमुख पर्यावरणीय मामले

  1. गंगा नदी की सफाई (1985):
    • मेहता ने गंगा नदी की सफाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कई निर्देश जारी किए।
    • इस याचिका के कारण कई औद्योगिक इकाइयों को बंद किया गया और गंगा नदी के किनारे बसे शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए।
  2. ताजमहल की सुरक्षा (1984):
    • उन्होंने ताजमहल के आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण को रोकने के लिए एक जनहित याचिका दायर की।
    • सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ताजमहल के आसपास के प्रदूषणकारी उद्योगों को या तो बंद किया जाए या उन्हें ताज ट्रेपेज़ियम ज़ोन (TTZ) के बाहर स्थानांतरित किया जाए।
  3. दिल्ली का वायु प्रदूषण (1995):
    • उन्होंने दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की।
    • सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी सार्वजनिक परिवहन वाहन कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) पर चलें, जिससे दिल्ली में वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ।

पुरस्कार और सम्मान

  • रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1996): उन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार (1997): यह पुरस्कार उन्हें विश्व के सबसे प्रमुख पर्यावरण कार्यकर्ताओं में से एक के रूप में सम्मानित करता है।
  • पद्म श्री (2016): भारतीय सरकार द्वारा उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया।

अन्य योगदान

  • महेश चंद्र मेहता ने पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यशालाओं और सम्मेलनों का आयोजन किया है।
  • उन्होंने “MC Mehta Environmental Foundation” की स्थापना की, जो पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है।

महेश चंद्र मेहता का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति भी बड़े बदलाव ला सकता है, अगर उसके पास दृढ़ संकल्प और सही दिशा में काम करने का जुनून हो। उनकी कानूनी लड़ाईयों ने न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल कायम की है।

सुंदरलाल बहुगुणा

सुंदरलाल बहुगुणा एक प्रमुख भारतीय पर्यावरण कार्यकर्ता और गांधीवादी थे, जिन्होंने चिपको आंदोलन का नेतृत्व किया और हिमालय के पर्यावरण की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष किया। यहाँ उनके जीवन और कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के सिल्यारा गाँव में हुआ था।
  • उन्होंने लाहौर में अध्ययन किया, जहाँ वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए और गांधीवादी सिद्धांतों का पालन करने लगे।

चिपको आंदोलन

  • 1970 के दशक में उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही थी, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा था।
  • 1973 में, सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें स्थानीय महिलाएँ पेड़ों को गले लगाकर उनकी कटाई का विरोध करती थीं।
  • “चिपको” का अर्थ है “गले लगाना,” और इस आंदोलन का उद्देश्य जंगलों को बचाना और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना था।
  • इस आंदोलन ने न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया और इसे पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक के रूप में देखा गया।

टिहरी बांध विरोध

  • 1980 और 1990 के दशकों में, सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध परियोजना का विरोध किया, जो गंगा नदी पर बनाया जा रहा था।
  • उन्होंने तर्क दिया कि यह परियोजना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगी और स्थानीय लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव डालेगी।
  • उन्होंने इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने के लिए लंबी भूख हड़तालें कीं और पर्यावरणीय न्याय के लिए संघर्ष किया।

गांधीवादी विचारधारा

  • बहुगुणा ने अपना जीवन गांधीवादी सिद्धांतों के अनुरूप जिया, जिसमें अहिंसा, सादा जीवन और सतत विकास शामिल थे।
  • उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने के लिए काम किया और सतत जीवनशैली को बढ़ावा दिया।

पुरस्कार और सम्मान

  • राइट लाइवलीहुड अवार्ड (1981): जिसे ‘अल्टरनेटिव नोबेल प्राइज’ के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें पर्यावरण संरक्षण में उनके असाधारण योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
  • पद्म विभूषण (2009): भारतीय सरकार द्वारा उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया।
  • जामनालाल बजाज पुरस्कार (1986): यह पुरस्कार उन्हें गांधीवादी मूल्यों के प्रसार और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके काम के लिए दिया गया।

अन्य योगदान

  • सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय के पारिस्थितिकी और वहां के निवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कई अभियान चलाए।
  • उन्होंने जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के महत्व को समझाया और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया।
  • उनके जीवन का उद्देश्य पर्यावरण और समाज के बीच संतुलन बनाना था, जिससे मानव और प्रकृति दोनों का समान रूप से विकास हो सके।

निधन

  • सुंदरलाल बहुगुणा का निधन 21 मई 2021 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

सुंदरलाल बहुगुणा का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि दृढ़ संकल्प और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। उनका योगदान न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

वंदना शिवा

वंदना शिवा एक प्रमुख भारतीय पर्यावरण कार्यकर्ता, वैज्ञानिक, और लेखिका हैं, जो जैविक खेती, जैव विविधता, और कृषि के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका कार्य मुख्य रूप से पर्यावरण संरक्षण, किसानों के अधिकार, और खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित है। यहाँ उनके जीवन और कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • वंदना शिवा का जन्म 5 नवंबर 1952 को देहरादून, उत्तराखंड में हुआ था।
  • उनके पिता वन विभाग में कार्यरत थे और उनकी माता एक शिक्षिका थीं।
  • वंदना ने भौतिकी में स्नातक की डिग्री पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की और इसके बाद वे कनाडा चली गईं जहाँ उन्होंने क्वांटम थ्योरी में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।

कैरियर और योगदान

  • भारत लौटने के बाद, वंदना शिवा ने पर्यावरण और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में काम करना शुरू किया।
  • उन्होंने भारतीय कृषि प्रणाली में हो रहे बदलावों, विशेषकर हरित क्रांति और जीएमओ (Genetically Modified Organisms) फसलों के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया।

नवदन्या

  • 1982 में, वंदना शिवा ने “नवदन्या” नामक एक गैर-सरकारी संगठन की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य जैविक खेती, पारंपरिक बीजों का संरक्षण, और किसानों के अधिकारों की रक्षा करना है।
  • नवदन्या का अर्थ है “नौ बीज,” और यह संगठन किसानों को बीज बैंक बनाने, जैविक खेती को बढ़ावा देने और कृषि में आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करने में मदद करता है।
  • नवदन्या ने हजारों किसानों को जैविक खेती के तरीकों को अपनाने में सहायता की है और पारंपरिक बीजों की विविधता को संरक्षित किया है।

लेखन और अनुसंधान

  • वंदना शिवा ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: “Staying Alive: Women, Ecology, and Development,” “Earth Democracy: Justice, Sustainability, and Peace,” और “Biopiracy: The Plunder of Nature and Knowledge”।
  • उनके लेखन में उन्होंने पर्यावरणीय न्याय, जैव विविधता संरक्षण, और वैश्वीकरण के प्रभावों पर विचार व्यक्त किए हैं।

पुरस्कार और सम्मान

  • राइट लाइवलीहुड अवार्ड (1993): जिसे ‘अल्टरनेटिव नोबेल प्राइज’ के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें जैव विविधता और सतत कृषि के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
  • सिडनी पीस प्राइज (2010): यह पुरस्कार उन्हें पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उनके काम के लिए दिया गया।
  • फुकेओका एशियन कल्चर प्राइज (2012): यह पुरस्कार उन्हें एशिया के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विविधता को बढ़ावा देने के लिए दिया गया।

अन्य योगदान

  • वंदना शिवा ने “एशियन पीस प्राइज” (1992) और “होफ रिबोल्डिंग अवार्ड” (1997) सहित कई अन्य पुरस्कार भी जीते हैं।
  • उन्होंने वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास के मुद्दों पर काम किया है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखी है।
  • वंदना शिवा ने कृषि और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को भी महत्वपूर्ण माना है और उनके सशक्तिकरण के लिए काम किया है।

विचारधारा और दृष्टिकोण

  • वंदना शिवा का मानना है कि जैविक खेती और पारंपरिक बीजों का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि समाज के समग्र विकास के लिए भी आवश्यक है।
  • वे वैश्वीकरण के खिलाफ हैं और मानती हैं कि यह स्थानीय कृषि और जैव विविधता के लिए हानिकारक है।
  • उनका दृष्टिकोण स्थायी विकास, जैविक विविधता, और स्थानीय समुदायों की आत्मनिर्भरता पर केंद्रित है।

वंदना शिवा का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि पर्यावरण और समाज के बीच संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है। उनका योगदान न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

मेनका गांधी

मेनका गांधी एक प्रमुख भारतीय पर्यावरणविद्, पशु अधिकार कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने भारतीय राजनीति और सामाजिक सेवाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, विशेषकर पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण के क्षेत्र में। यहाँ उनके जीवन और कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • मेनका गांधी का जन्म 26 अगस्त 1956 को दिल्ली, भारत में हुआ था।
  • उन्होंने लॉरेंस स्कूल, सनावर से शिक्षा प्राप्त की और बाद में लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • मेनका गांधी भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की पत्नी हैं।

पर्यावरण और पशु कल्याण

  • मेनका गांधी का पर्यावरण और पशु कल्याण के प्रति गहरा प्रेम उन्हें इस क्षेत्र में काम करने के लिए प्रेरित करता है।
  • उन्होंने 1982 में “पीपल फॉर एनिमल्स” (PFA) नामक गैर-सरकारी संगठन की स्थापना की, जो भारत का सबसे बड़ा पशु कल्याण संगठन है।
  • पीपल फॉर एनिमल्स का उद्देश्य पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकना, घायल और बीमार पशुओं का उपचार करना, और पशु अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

राजनीतिक करियर

  • मेनका गांधी ने भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्य हैं।
  • वे कई बार लोकसभा सांसद चुनी गईं और विभिन्न मंत्रालयों में कार्य किया, जिनमें पर्यावरण और वन मंत्रालय भी शामिल है।
  • उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण के कई महत्वपूर्ण विधेयकों और नीतियों को लागू करने में मदद की।

प्रमुख योगदान

  1. पशु अधिकार:
    • मेनका गांधी ने पशु क्रूरता के खिलाफ कई अभियान चलाए और पशु अधिकारों की रक्षा के लिए कड़े कानूनों की वकालत की।
    • उन्होंने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की अध्यक्षता की और पशु संरक्षण के लिए कई पहलें शुरू कीं।
  2. पर्यावरण संरक्षण:
    • उन्होंने वन्यजीव संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण, और पर्यावरणीय शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • मेनका गांधी ने प्लास्टिक प्रदूषण, वनों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए काम किया है।

लेखन और मीडिया

  • मेनका गांधी ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें “The Complete Book of Muslim and Parsi Names” और “Heads and Tails” प्रमुख हैं।
  • उन्होंने पर्यावरण और पशु कल्याण के मुद्दों पर कई लेख और स्तंभ भी लिखे हैं।
  • वे कई टीवी कार्यक्रमों में भी दिखाई दीं हैं, जहाँ उन्होंने पशु अधिकार और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर चर्चा की है।

पुरस्कार और सम्मान

  • मेनका गांधी को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
  • उन्होंने पशु कल्याण और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त की है।

अन्य पहलें

  • मेनका गांधी ने जड़ी-बूटी और आयुर्वेदिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भी काम किया है।
  • उन्होंने पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई स्कूल और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं।

विचारधारा और दृष्टिकोण

  • मेनका गांधी का मानना है कि पशुओं और पर्यावरण की रक्षा करना मानवता का कर्तव्य है और उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा इस उद्देश्य के लिए समर्पित किया है।
  • वे मानती हैं कि सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से ही समाज का समग्र विकास संभव है।

मेनका गांधी का जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि पर्यावरण और पशु कल्याण के क्षेत्र में जागरूकता और सक्रियता कितनी महत्वपूर्ण है। उनके प्रयासों ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

शिवराम कारंथ

शिवराम कारंथ एक प्रमुख कन्नड़ लेखक, पर्यावरणविद्, और समाज सुधारक थे। उन्होंने साहित्य, पर्यावरण संरक्षण, और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहाँ उनके जीवन और कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • कोटा शिवराम कारंथ का जन्म 10 अक्टूबर 1902 को कर्नाटक के उडुपी जिले के कोटा गाँव में हुआ था।
  • उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंगलोर और उडुपी में प्राप्त की। वे बचपन से ही प्रकृति और साहित्य के प्रति गहरी रुचि रखते थे।

साहित्यिक करियर

  • शिवराम कारंथ ने कन्नड़ साहित्य में व्यापक योगदान दिया है। उन्होंने उपन्यास, नाटक, निबंध, और बच्चों की किताबें लिखीं।
  • उनके प्रमुख उपन्यासों में “मूकाज्जी कन्नसुगलु,” “चोमना डुडी,” “मरलीना मागा,” और “ಮಧುಮಂಗಳ” शामिल हैं।
  • “मूकाज्जी कन्नसुगलु” के लिए उन्हें 1977 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार है।
  • उन्होंने 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें विज्ञान, पर्यावरण, और कला पर लेख भी शामिल हैं।

पर्यावरण संरक्षण

  • शिवराम कारंथ एक सक्रिय पर्यावरणविद् थे और उन्होंने कर्नाटक के प्राकृतिक संसाधनों और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
  • उन्होंने कर्नाटक के पश्चिमी घाटों की पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाई और संरक्षण अभियान चलाए।
  • उन्होंने “निसर्ग मित्र” नामक संगठन की स्थापना की, जो पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है।

समाज सुधार

  • कारंथ ने समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे जाति प्रथा, अंधविश्वास, और सामाजिक असमानता के खिलाफ थे और अपने लेखन के माध्यम से इन मुद्दों पर जागरूकता फैलाने का प्रयास किया।
  • उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वच्छता के महत्व को बढ़ावा दिया और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए काम किया।

पुरस्कार और सम्मान

  • ज्ञानपीठ पुरस्कार (1977): भारतीय साहित्य में उनके असाधारण योगदान के लिए यह पुरस्कार उन्हें दिया गया।
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार: उनके साहित्यिक कार्यों के लिए उन्हें यह सम्मान भी प्राप्त हुआ।
  • पद्म भूषण (1976): भारतीय सरकार द्वारा साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें इस नागरिक सम्मान से नवाजा गया।
  • कन्नड़ साहित्य परिषद पुरस्कार: कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें यह सम्मान भी मिला।

विचारधारा और दृष्टिकोण

  • शिवराम कारंथ का मानना था कि साहित्य और कला समाज के विकास और सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • वे प्रकृति और पर्यावरण के प्रति गहरे समर्पित थे और मानते थे कि पर्यावरण संरक्षण के बिना समाज का सतत विकास संभव नहीं है।
  • उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक सोच, सामाजिक न्याय, और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित था।

अन्य योगदान

  • कारंथ ने कर्नाटक की पारंपरिक कला और संस्कृति के संरक्षण और पुनरुत्थान के लिए भी काम किया। उन्होंने कई लोक नृत्यों और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया।
  • उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रसार के लिए भी प्रयास किए और विज्ञान पर आधारित कई पुस्तकें लिखीं, जिनका उद्देश्य बच्चों और युवाओं को विज्ञान के प्रति रुचि जगाना था।

निधन

  • शिवराम कारंथ का निधन 9 दिसंबर 1997 को हुआ, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी साहित्य, पर्यावरण संरक्षण, और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

शिवराम कारंथ का जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि साहित्य, कला, और पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं। उनका बहुआयामी योगदान न केवल कर्नाटक बल्कि पूरे भारत में समादृत है और उनके कार्यों का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है।

निष्कर्ष

महेश चंद्र मेहता, सुंदरलाल बहुगुणा, वंदना शिवा, मेनका गांधी, और शिवराम कारंथ जैसे महान पर्यावरणविदों के जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि एक व्यक्ति के समर्पण और दृढ़ संकल्प से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। इन व्यक्तित्वों ने अपने-अपने तरीके से पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।उनकी कहानियाँ हमें प्रेरित करती हैं कि हम भी अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करके पर्यावरण की रक्षा में सहयोग कर सकते हैं। चाहे वह प्लास्टिक का कम उपयोग हो, वृक्षारोपण हो, जैविक खेती को बढ़ावा देना हो या पशु अधिकारों के लिए आवाज उठाना हो, हम सभी अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।इन महान व्यक्तियों की विरासत को आगे बढ़ाने और हमारे ग्रह को स्वस्थ और हरित बनाने के लिए हमें सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। आइए, हम सभी उनके दिखाए मार्ग पर चलें और एक स्वच्छ, हरा-भरा, और स्थायी भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं।

अन्तिम तक पढ़ने के लिए आपका आभार

tina varma

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